Wednesday, June 11, 2014

नींद

नींद से पागल जब होते है खुद पर काबू खो देते है गर्मी सर्दी चट्टानों को अनदेखा फिर कर देते है, एक उजाले दिन में भी अँधियारा बन जाते है आँखों की खुशियों पे ताले बन कर खुद रह जाते है दर्द भरे लम्हों में जब आँखों में आंसू आते है चुपके -चुपके ,धीरे-धीरे नींदों में खो जाते है कभी किसी के गम को काटे कभी ख़ुशी बन जाते है एक अकेले तन्हाई में रिश्ता खूब निभाते है नींदों का भी क्या कहना जब चाहे आ जाते है मतवाली आँखों में बेड़ी जब चाहे दे जाते है। मौर्या ज्ञानेश।।।।

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