Sunday, April 5, 2009

ये बेटियाँ

ये बेटियाँ तो चमन की फूल होती है
किसी की सर की ताज तो किसी के चरणों की धूल होती हैं
खिलखिलाती इनकी बोली koyal ki kook hotin hai
ना जाने क्यों फिर भी हर किसी के लिए शूल होती है
मासूम फूलो की तरह कोमल चेहरा ,मोम की तरह कोमल हिरदय र्फ की तरह शीतल और झील जैसी आखों के होते हुए भी ना जाने क्यो इन बेटियों को समाज पर बोझसमझा जाता है लड़को की अपेक्षा इन्हे जादा तवज्जो भी नही मिलता है और न ही स्वतंत्रता इसके बावजूद भ्रूण हत्या जैसे भयानक अपराध को भी आज के वर्तमान माँ -बाप ने अपना लिया है न इनको उचित शिक्षाऔर ना ही लड़को कीअपेक्षा उचित भोजन की ब्यवस्था होती है। उनकी आजादी पर बिल्कुल पाबंदी होती है जो कुछ बेटियाँ आजादी का अनुभव करती भी है तो उन्हें इस क्रूर समाजके हवश का शिकार होना पड़ता है कितनी बेटियाँ हर साल इस समाज से तंग आकर आत्म हत्या करने पर मजबूर होती है । कितनो को मार दिया जाता है जिसमे हमारे देश में एक लाख जनसख्या पर १०.६ % लोग मरते है लेकिन वहीं पर देश में हर एक घंटे में एक महिला को दहेज़ के लिए मार दिया जाता है .यदि इसी तरह चलता रहा तो एक दिनes इनका अस्तित्तव खतरे में पड़ जाएगा । यह समाज क्यो नही इस तरफ ध्यान दे रहा है ।







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