नींद से पागल जब होते है
खुद पर काबू खो देते है
गर्मी सर्दी चट्टानों को
अनदेखा फिर कर देते है,
एक उजाले दिन में भी
अँधियारा बन जाते है
आँखों की खुशियों पे ताले
बन कर खुद रह जाते है
दर्द भरे लम्हों में जब
आँखों में आंसू आते है
चुपके -चुपके ,धीरे-धीरे
नींदों में खो जाते है
कभी किसी के गम को काटे
कभी ख़ुशी बन जाते है
एक अकेले तन्हाई में
रिश्ता खूब निभाते है
नींदों का भी क्या कहना
जब चाहे आ जाते है
मतवाली आँखों में बेड़ी
जब चाहे दे जाते है।
मौर्या ज्ञानेश।।।।
Wednesday, June 11, 2014
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